गुड़गांव. ‘ हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल के’ गाने की ये चंद पंक्तियां देश के उन सिपाहियों के संघर्ष और बलिदान को बयान करती हैं, जिसकी बदौलत हमें तिरंगा फहराने का अधिकार मिला। आजाद हिंद फौज के ऐसे ही एक सिपाही जगराम के साहस के किस्से सुन कर भी हमारा सीना चौड़ा हो जाता है।
फटी निक्कर और जुराब में गुजारे थे कई महीने
एक बार नेता जी कैंप में आए, तो कमांडर के तौर पर मैं उनके सामने खड़ा हो गया। उन्होंने मुझे देखा और पूछा कि फटी हुई जुराब क्यों पहनी है। मैंने कहा, मुझे फौज की तरफ से एक निक्कर मिली है और वह लालकिला पहुंच कर पहननी है। मेरी निक्कर में भी 18 जगह से जोड़ लगे हुए थे। उन्होंने निक्कर के बारे में पूछा तो मैंने फिर कहा कि अच्छी निक्कर लाल किले पर पहननी है। नेता जी ने जोश में कहा कि अगर ऐसे सिपाही मेरे साथ हैं, तब वह दिन दूर नहीं जब हम लालकिला पर झंडा फहराएंगे।
तीन बार गए जेल
दूसरे विश्व युद्ध में आजाद हिंद फौज में रहकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने पर स्वतंत्रता सेनानी जगराम को तीन बार जेल भी जाना पड़ा। अंग्रेजों की कैद में भी उनके हौसले पस्त नहीं हुए। अंग्रेज कुछ पूछते, तो उनका एक ही जवाब होता था कि हमें तुमको देश से भगाना है।
प्रधानमंत्री को दे डाली नसीहत
जगराम बताते हैं कि जब उनको सरकार की तरफ से सात अगस्त को अशोक भवन में सम्मानित किया गया, तो उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पीठ थपथपाते हुए कहा कि आपकी ईमानदारी पर तो मुझे कोई शक नहीं है, लेकिन आपकी टीम ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया है। अगर टीम असफल हुई, तो शासक भी असफल ही साबित होता है। आपकी नींव अशोक भवन के मजबूत पिलरों की तरह मजबूत होनी चाहिए।
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