Sunday, May 29, 2011

लोग लड़ते क्यों हैं !

लोग लड़ते क्यों हैं !



मज़हब शब्द सुनते ही सत्य, निष्ठा, न्याय,


पराक्रम एवं विश्व बंधुत्व की सुगंध आने लगती है. कुरीति, कुकर्म, दुराचार,


दुर्व्यवहार, अत्याचार, अन्याय एवं आप्राकृतिक कार्यों से व्यक्ति अपने को


अलग करने का प्रयास करता है. वस्तुतः मज़हब जीने का नया अंदाज़ सिखाता है.


साफ़-सुथरे, सीधे एवं सुगम मार्गों को प्रशस्त करता है. दुनिया के सभी


मज़हब मानवता के सम्पूर्ण विकास, खुशहाल समाज का निर्माण एवं प्रकृति के आदर


का गुण सिखाते हैं. सभ्य, सुदृढ़, समृद्ध एवं अनुशासित समाज के निर्माण


में मज़हब का महत्वपूर्ण योगदान होता है.जब


देश में स्वतंत्रता संग्राम अपने शीर्ष पर था उस समय अंग्रेजों ने मज़हब


की आड़ में हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़कर स्वतंत्रता सेनानियों को दिग्भ्रमित


करना चाहा. फिरंगियों के नापाक मंसूबों से चिंतित डा. सर मोहम्मद इक़बाल


ने अविस्मरणीय पैगाम दिया – ”मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना”. 1942


में कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने भारतीयों को ललकारते हुए कहा – ”प्यारे


स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ, चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ.”


मातृभूमि की रक्षा उसके संतान जो विभिन्न मजहबों के होते हैं, वही करते


हैं, एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर.


वर्तमान


भारत में मज़हब का अर्थ कुछ बदला बदला सा नज़र आता है. भारत-पाकिस्तान


क्रिकेट मैच के दौरान कुछ लोग पाकिस्तान की जीत पर पटाखे फोड़ते नजर आते


हैं. मक्का मस्जिद धमाके में जब नकली दाढ़ी टोपी वाला शव बरामद होता है तो


मीडिया उसे दिखाती है. फिर यका यक वो शव और उसकी शिनाख्त गायब हो जाती है.


गोधरा में ट्रेन में आगजनी होती है, उस पर


अलग-अलग रेल मंत्रियों के अलग अलग बयान और जांच रिपोर्टें आती हैं. आम


चुनाव के मौसम में राजनीतिक पार्टियां कथित रूप से साम्प्रदायिक और सेकुलर


हो जाती हैं. पूरा देश मज़हबी नफरत की आग में धधक उठता है. कहीं नन अपनी


अस्मत की सुरक्षा का गुहार लगाते मीडिया की जीनत बनती है. लगातार भारत मां


का आँचल उसके अपने बच्चों के खून से सनता जा रहा है. अपने बच्चों की मज़हबी


लड़ाई से रक्त-रंजित मातृभूमि कराह उठी है.


किसी


भी मजहब के किसी भी ग्रंथ में हिंसा का पाठ नहीं मिलता है. समानता और


सौहार्द के वातावरण में जीने वाले भारतीय अब विश्व शांति का सन्देश नहीं दे


पा रहे हैं. व्यक्तिगत स्वार्थ में लिप्त राजनेता, कार्यपालिका और मीडिया


यह भूल गयी है कि जब तक खून खराबा और आतंक का राज रहेगा अर्धविकसित भारत


पूर्ण विकसित नहीं हो पायेगा. नास्तिक कहते हैं धर्म में अफीम से ज्यादा


नशा है. भारत तो आस्तिकों का देश है. यहां पुराण, वेदांग, गुरु ग्रन

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